Jahnavi Sharma

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आकांक्षा: द डेविल्स एंजेल

सन् 1850......


यह वो दौर था, जब भारत मे अंग्रेजी सत्ता ने अपनी पकड़ मजबूत बना ली थी। रियासतो के शासक अंग्रेजो के गुलाम बन चुके थे। उसी तरह एक रियासत थी "बिलासपुर की रियासत"। 
बिलासपुर की रियासत के शासक महाराज विक्रमप्रताप सिंह थे। आज महल मे उत्सव का माहौल था। चारो तरफ बस खुशियाँ छाई हुई थी। महल को बहुत ही खूबसूरती से सजाया गया था। रानी मैनावती को तो जैसे आज पंख लग गए थे। वो इधर उधर भाग - दौड़ मे लगी हुई थी । 


मैनावती ने जोर से आवाज लगाकर बोला, "अरे चंपा..! तुम इधर आओ। जमुना किसी भी चीज की कोई कमी नहीं देनी चाहिए। पता है ना आज का दिन कितना शुभ है।"

जमुना दौड़ कर उनके पास आई और मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "हां हां रानी सा..! जैसा आपने बताया वैसा सब इंतज़ाम हो गया है। आप सुबह से दौड़ धूप मे लगी है। कुछ देर विश्राम कर लीजिये।"

मैनावती– "अब तो हम तभी विश्राम करेंगे, जब हमारे राजकुमार रीवांश हमारे सामने आएंगे। उनके पिताजी ने उन्हें विदेश में पढ़ने के लिए भेजा था। अब तक तो उनकी पढाई पूरी हो चुकी होगी। पूरे 10 साल बाद हम अपने रीवांश को देखेंगे। जब वह गए थे, तब 15 साल के थे। कितने बड़े हो गए होंगे ना हमारे बेटे ? अरे अब तो उनकी शादी की भी उम्र हो गई होगी। अब तो एक पल का भी इंतजार नहीं होता। बस अब तो वो आँखों के सामने आयेंगे, तभी इन्हे सुकून मिलेगा।" 

दूसरी दासी चंपा भी उस तरफ दौड़कर आई। उसने रानी मैनावती को फूलों दिखाते हुए पूछा, "ये ठीक है ना रानी सा? और क्यों चिंता करती है? बस आज रात की बात है। यह रात गुजर जाए, फिर सुबह तो राजकुमार आपकी आंखों के सामने होंगे।"

मैनावती ने जवाब दिया, "यह रात ही तो नही गुजरती। उनके इंतेजार मे हमने कितनी ही रातें बिता दी। लेकिन ये एक रात का इंतजार हमारे पिछले 10 सालों के इंतजार पर भारी पड़ रहा है।"

मैनावती वहाँ से शाही रसोई घर की तरफ मुड़ी, जहाँ वो पर रीवांश के पसंदीदा पकवान बनाये जा रहे थे। 

उधर दूसरी तरफ राजकुमार रीवांश अपने शाही घोड़े पर बिलासपुर की तरफ बढ़ रहे थे। उनके साथ उन्ही की रियासत के चार लड़के थे। वैसे तो वो चारों वही के दास दासियों के पुत्र थे, लेकिन रीवांश ने उन्हे हमेशा अपना दोस्त समझा। 
राजकुमार रीवांश इस बात से पूर्णतया अंजान से कि जिन्हे वो अपना दोस्त समझ रहे है, वो ही आज उन्हें उनके जीवन का सबसे बड़ा श्राप देने वाले थे। 


बिलासपुर के पास का जंगल..... 
रात के 10 बजे.... 

रीवांश ने जंगल मे प्रवेश करने से पहले अपने घोड़े को रोककर पूछा, "आप लोग हमे इस घने जंगल मे क्यों लेकर जा रहे है? रास्ता तो उधर से भी जाता है ना?"

विजय ने शैतानी मुस्कुराहट के साथ जवाब दिया, "अरे युवराज! आप डर क्यों रहे हैं ? ये रास्ता छोटा पड़ता है। रानी सा आपके इंतजार मे बावली हुई जा रही है। तो हमने सोचा कि हम इस रास्ते से चले।" 

रीवांश उनकी बात मानकर उनके साथ जंगल वाले रास्ते से आगे बढे। वो भी अपनी माँ से मिलने के लिए बहुत आतुर हो रहे थे। 
जंगल मे कुछ दूर पहुँचकर उन चारों ने सबको रुकने का इशारा किया और रात को वही डेरा जमाने का आदेश दिया। रात काफी हो चुकी थी और सब लोग बहुत थक भी चुके थे, तो वही कारवा जमाने मे लग गए। 

संजय ने रीवांश के पास जाकर बोला, " जब तक ये लोग यहाँ डेरा लगाते है, हम थोड़ा आगे जाकर टहल आते है? क्यों राजकुमार चलेंगे ना?" 

"नही हम काफी थक गए है। और नींद भी काफी आ रही है।" रीवांश ने उन्हे मना कर दिया। 


उसके मना करने पर उन चारों का चेहरा उतर गया। 
रवि ने मुँह लटकाकर कहा, "लगता है विदेश में पढ़ कर आप अपने बचपन के साथियों को भूल गए? हमारी औकात नहीं थी कि हम भी परदेस में जाकर पढ़ें। हम आप के ओहदे से काफी छोटे है, तभी आप हमारे साथ नही घूमना चाहते ना? 


रीवांश ने चकित होकर कहा, "ये आप लोग कैसी बातें कर रहे हैं? हमने कभी अमीर गरीब में भेद नहीं किया। भले ही हम विदेश में पढ़कर आए हैं, लेकिन हमारे संस्कार आज भी भारतीय ही हैं। चलिए चलते है। 



रघु ने अपने साथ एक थैला लिया। रीवांश ने उसकी तरफ सवालिया नजरो से देखा तो उसने बहाना बनाकर कहा, " इसमे हमारे खाने पीने का समान है बस..!" 


रीवांश मुस्कुराते हुए उन चारों के साथ आगे बढे। काफी दूर चलने के बाद वो जंगल मे काफी आगे निकल गए। 

"लगता है आप काफी थके गए है राजकुमार! चलिए विश्राम करते है।" उन में से चौथा लड़का रवि बोला। 

वो पांचो वही बैठ गए। ठंड होने के कारण रवि ने वहाँ बीचो बीच थोड़ी आग जला ली। फिर उसने अपने थैले मे से कुछ तंत्र विद्या का सामान निकालता है। उस तंत्र विद्या के सामान को देखकर विजय, संजय, रघु और रवि के चेहरे पर एक शैतानी मुस्कुराहट आ गयी। 
रीवांश कुछ नहीं समझ पा रहे थे कि उन लोगों के पास में यह सब क्या और क्यों था। 


रीवांश ने अपनी जिज्ञासा शांत करने ले लिए पूछा, "यह आप सब लोगों ने क्या ले रखा है? हम लोग तो विश्राम करने के लिए रुके है ना?"


संजय उन चारों मे सबसे चालक था। उसने जवाब दिया, "अरे कुछ नहीं युवराज ... एक छोटा सी पूजा है। आप की सलामती और खुशहाली के लिए...! इसी बहाने रात भी कट जाएगी और देखिए ना, (आग जलाते हुए) आग होगी तो जंगली जानवर भी हमारे पास नहीं आएंगे और ठंड भी  नही लगेगी। 

रीवांश स्वभाव से बहुत मासूम और दिल का सच्चा था। वह उन सबके मन में चल रही कुटिलता से अनजान था। उसे नही पता था कि वो लोग दोस्ती के चोगे मे छुपे वो भेड़िये थे, जो उस पर पीठ पीछे वार करने की तैयारी के साथ ही आए थे। वह उन कुटिलो की मीठी-मीठी बातों मे आ गया और अनजाने में उस पूजा में शामिल हो गया। यह पूजा कोई आम पूजा नही थी। यह एक बहुत ही सिद्ध काले जादू की पूजा थी। वो चारो काफी समय से उस दिन का इंतज़ार कर रहे थे, जब वो राजकुमार के साथ वो तंत्र विद्या कर सके। वो उस साधना के जरिये स्वयं शैतान को जागृत करना चाहते थे। 
रीवांश का जन्म पूर्णिमा के दिन अश्विनी नक्षत्र में हुआ था।  अश्विनी नक्षत्र सभी नक्षत्रों में सबसे शक्तिशाली नक्षत्र माना जाता है।  उन चारों को अच्छी तरह से मालूम था कि राजकुमार के ग्रह नक्षत्र बहुत शक्तिशाली है। इस सिद्ध पूजा को अभिमंत्रित करने के लिए कोई शक्तिशाली गृह नक्षत्र का स्वामी होना जरूरी था इसलिए उन्होंने बेईमानी से उन्हें पूजा में बिठा दिया। वह चारों इस पूजा में कई मासूमों की बलि से इकट्ठा किया हुआ रक्त का प्रयोग करते हैं। वो लोग काफी समय तक उस पूजा को करते रहे। 

रात्रि के तीसरे पहर बीतने के साथ ही जंगल के अंदर मनहुसियत छा गयी। शैतान बुराई का जड़ था। उसकी परछाई जंगल पर पड़ी और उसी क्षण वो जंगल एक शापित जगह मे परिवर्तित हो गया। वह अंधेरी रात उस बुराई से और ज्यादा अंधेरी हो गई। चारों तरफ भेड़ियों और चमगादड़ के रोने की आवाज आ रही थी। जानवर इधर उधर भागने लगे। हर तरफ से बुरी शक्तियाँ आने लगी, मानो वो शैतान जो कि उनका बादशाह था, उनके आने की खुशीयां मना रहे हो.... डायन और चुडेले अपनी कर्कश ध्वनि से गुनगुना रही थी.... उनका स्वर इतना भयानक था कि उन पांचो के कानों से खून बहने लगा। 

वो शैतान की परछाई बहुत भयानक थी। भले ही कुछ साफ नजर ना आ रहा हो, लेकिन वहाँ खौफ पैदा उत्पन्न के लिए उसका काला साया ही काफी था। वो बहुत विशाल और भयावह था। उसकी परछाई ने पूरे जंगल को आसमां की भाति अपने आगोश मे ले लिया था। 

वो पांचों घबरा गए। तभी किसी की बहुत ही भयानक आवाज गूंजी, "किसने किया है हमारा आह्वान..... जानते नही ....जब एक शैतान आता है, तो कईयों की मौत साथ लाता है।"

रघु, विजय, संजय और रवि नीचे सिर झुका कर बैठ गए। वह मंजर इतना भयानक था कि उन चारों के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकलता। रीवांश तो अपनी जगह पर जैसे पत्थर की मूर्ति बन गए। उन्हे कुछ समझ नही आ रहा था कि वहाँ क्या हो रहा है। 

रघु ने हिम्मत बटोरकर हकलाते हुए कहा, "म.. मालिक हम चार दासो ने आप का आह्वान किया है। मालिक की जय हो .... अंधेरे की जय हो।"


तभी वो भयावह आवाज फिर गूंजते हुए बोली, "बोलो क्या चाहिए?"


विजय ने कुटिल मुस्कान के साथ जवाब दिया, "हमें अंधेरे का गुलाम बना लीजिए। हमें तामसी शक्तियां चाहिए। हमे... हमे अपनी सरगोशी मे ले लीजिये मालिक..! "


संजय ने उसकी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, " हम हमेशा जिंदा रहना चाहते हैं। हम चाहते है कि कभी बुढ़ापे का साया भी हम लोगों के ऊपर ना पड़े।"

रवि–"बस कुछ भी कर के हम हमेशा जीवित रहना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि जैसे जैसे हमारी उम्र बढ़े, वैसे वैसे हमारी शक्तियां भी बढ़ती जाए।"

"और तुम्हे क्या चाहिए? बोलो.... तुम्हें क्या चाहिए? तुम्हारे द्वारा ही ये पूजा सम्पन्न हुई है।" शैतान का इशारा रीवांश की तरफ था। 

रीवांश उन सब घटनाक्रम से इतना ज्यादा डर गया कि उसके मुंह से कुछ नहीं निकला। वो वही जड़ हो गया। 


"चलो दिया, जो तुम पांचों चाहते हो... वो सब दिया। पर जानते हो ना की यहां हर एक इच्छा की एक कीमत होती है।" उसकी आवाज पूरी जंगल मे गुजने लगी। 

रघु ने जवाब मे कहा, "हमने कीमत अदा की है ना .... पूरे 100 बच्चों की बलि का रक्त अर्पित किया है आपको।"


"वह तो हमारे आने की कीमत थी। अब जो तुमने मांगा है उसकी भी एक कीमत होगी। तुम सब की आत्माएं अंधेरों की गुलाम होंगी। तुम्हारे पास शरीर तो होगा, लेकिन आत्मा नहीं होंगी। तुम हमेशा जीवित तो रहोगे लेकिन तुम सबको एक शापित जीवन जीना पड़ेगा। तुम्हारी शक्तियां दिन-ब-दिन बढ़ती तो जाएगी, लेकिन उसके लिए तुम्हें जीवित लोगों के रक्त की आवश्यकता पड़ेगी।"


संजय डरते हुए बोला, "आ... आप क्या बोल रहे हो? हमें कुछ समझ में नहीं आ रहा......!"

वो आवाज भयानक हंसी हंसते हुए बोली, "तुम लोग एक पिशाच का जीवन बिताओगे। नर पिशाच.... जो लोगों का खून पी कर जिंदा रहते हैं। तुम्हे लम्बी उम्र, जवानी और शक्तियाँ चाहिए ना... एक पिशाच के पास वह सब कुछ होता है।"

शैतान की बात सुनकर वह सारे डर कर वहां से भागने लगे। वो वहाँ से जा पाते, उससे पहले ही शैतान ने एक झटके में उन सब की आत्माओं को अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया और यहां से शुरुआत होती है उन पांचों के इंसान से नर पिशाच बनने की.....! 



उधर बिलासपुर के महल में रानी मैनावती और राजा विक्रम प्रताप सिंह राजकुमार रीवांश का इंतजार करते रह गए। लेकिन आती है तो उनके गायब होने की खबर.....! बिलासपुर के पूरे रियासत में यह खबर फैल गयी कि रीवांश और उनके चार दोस्तों ने खुद को शैतान का गुलाम बना लिया। इसी के साथ शुरू होता है बिलासपुर के जंगलों में मासूम मौतों का भयावह सफर...... 




कुछ समय बाद
सन 2018...

शिमला..... 
एक छोटा सा घर..... 

आकांक्षा ठाकुर अपने दादाजी राजवीर ठाकुर के साथ शिमला में शिफ्ट हुई। राजवीर जी एक सरकारी कर्मचारी थे और रिटायरमेंट के बाद उन्होंने शिमला में रहने का फैसला किया था। उन्होंने अपना घर जंगल के करीब लिया था, जहां पर आबादी ज्यादा नहीं थी। राजवीर जी शहर के शोरगुल से दूर एक शांत जीवन बिताना चाहते थे... वही उनकी यहां पर आकर रहने की वजह आकांक्षा भी थी। राजवीर जी का इकलौता बेटा मोहित और उसकी पत्नी नंदिनी का एक कार एक्सीडेंट में निधन हो चुका था। राजवीर जी का कहने के लिए कोई अपना नहीं रहा था। मोहित और नंदिनी की बेटी आकांक्षा में राजवीर जी की जान बसती थी। वही वह आकांक्षा के साथ होने वाली घटनाओं से भी बहुत परेशान थे। इसलिए वह आकांक्षा को लोगों की भीड़ से दूर एक शांत जगह पर लेकर आ गए थे। 

आकांक्षा एक 22 साल की लड़की थी.... दिखने मे आम सी एक मासूम सी लड़की.... जिसके लिए उसके दद्दू ही अब सब कुछ थे। आकांक्षा अपने कॉलेज की स्टडी पूरी कर चुकी थी और उसने शिमला के एक कॉलेज में अपनी मास्टर्ड की स्टडी करने के लिए एडमिशन लिया था। 

राजवीर जी ने जोर से आवाज लगाई,"अक्षु बेटा क्या कर रही है?  कितनी देर से देख रहा हूं..... 11:00 बज रहे हैं और अभी तक तू कॉलेज के लिए तैयार नहीं हुई। 

आकांक्षा ने चिल्लाते हुए जवाब दिया, "दद्दू मैं चली जाऊंगी ना अकेले कॉलेज... आप रोज रोज छोड़ने जाते हो, तो वहां पर सब मुझे बच्ची समझते हैं। और मैं आज कॉलेज नहीं जाने वाली हूं। मै आज मेरी फ्रेंड जानवी के पास जा रही हूँ। 

राजवीर जी उसके पास जाकर बोले, "तू तो किसी को दोस्त नहीं बनाती ... तो अब जानवी कैसे ... और यह वही है ना जो हमारे पड़ोस में रहती है।"

आकांक्षा ने मुँह बनाते हुए जवाब दिया, "दद्दू उसका घर हमारे घर से पूरे 15 मिनट दूर है , तो हमारी पड़ोसन कैसी हुई ? अब मैं जा रही हूं और आप मेरे साथ बिल्कुल नहीं जाएंगे।"

राजवीर जी मुस्कुराते हुए बोले, "अच्छा जा... लेकिन जल्दी आना ..... और अपने फोन का जीपीएस ऑन रखना।"

आकांक्षा बड़बड़ाते हुई बाहर निकली, "हां ताकि आप मेरे हर एक सेकंड की लोकेशन का पता लगा सके। आप भी ना दद्दू .... आपकी अक्षु अब बड़ी हो चुकी है।"

आकांक्षा राजवीर जी को बाय बोल कर जानवी से मिलने चली गयी। जानवी का घर पास होने के कारण वो पैदल ही वहाँ जा रही थी। रास्ते में वहां पर भीड़ इकट्ठा देखकर वह उस भीड़ के करीब चली गयी। 


आकांक्षा ने आगे जाकर पूछा, "क्या हुआ है यहां पर?"


भीड़ मे से एक आदमी ने जवाब दिया, "अरे वही जो रोज होता है। आए दिन जंगल के बाहर किनारे पर किसी ना किसी की लाश मिलती रहती है। अब तो पुलिस वाले भी इस शापित जंगल के अंदर जाने से डरते हैं।"

आकांक्षा ने अपना चश्मा ऊपर करते हुए कहा, "शापित जंगल....!!" वो मुस्कुराते हुए आगे बोली, "हम ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी में रह रहे हैं। आप यह कैसी बातें कर रहे हो अंकल? मै भी तो देखूं शापित जंगल के बाहर मिली लाश को"

बोलते हुए आकांक्षा भीड़ के अंदर जाकर देखा। वहाँ एक 20 - 22 साल की उम्र के लड़के की लाश पड़ी थी। उसके गर्दन पर दाई तरफ किसी जानवर के काटने के निशान बने थे। 

उसे देखकर आकांक्षा ने सोचा, "लगता है इसे किसी जानवर ने काटा होगा। तभी देखो बेचारे की मौत हो गई।"

सोचते सोचते अचानक आकांक्षा का हाथ उस लड़के के हाथ से टकरा गया.... और ना चाहते हुए भी आकांक्षा की आंखें बंद हो गयी। आँख बंद होते ही आकांक्षा को कुछ दृश्य दिखाई देने लगे। 

"एक लड़का भयानक जंगल में भागा जा रहा था.... चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा था .... और भागते हुए लड़का वह मदद की गुहार लगा रहा था। तभी अचानक से एक इंसान उसके पास आया और उसके कंधे के करीब आकर उसका खून पीने लगा। इसी बीच लड़के की मौत हो गयी।"

और इसी के साथ आकांक्षा जोर से चिल्लाते हुए वहाँ बेहोश होकर गिर गयी। 


क्रमशः...!  


#कहानी
#उपन्यास
#वेबसीरिज
#धारावाहिक

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15 Comments

shweta soni

26-Jul-2022 07:18 PM

Nice 👍

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The story

26-Apr-2022 01:48 AM

इंट्रेस्टिंग शुरुआत

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Shrishti pandey

21-Apr-2022 11:41 PM

Very nice

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